360 लाख करोड़ रुपये का बजट तय किया गया है. लेकिन अभी तक अधिकांश घरों तक पीने का पानी नसीब नहीं नियंत्रण बोर्ड( CPCB) के अनुसार, कई नदियाँ और जलाशय विभिन्न प्रकार के प्रदूषकों से दूषित हैं । पिछले कुछ दशकों में भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता में कमी आई है । वर्ष 1951 में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता लगभग 5,177 क्यूबिक मीटर थी, जो 2021 के आँकड़े अनुसार अब घटकर लगभग 1,545 क्यूबिक मीटर रह गई है
आज कर्नाटक मुंबई जैसे राज्य पानी के किनारे बसे होने के करण भी पीने वाले पानी के लिए कड़ी मसक्कत कर रहे है साल 2019 में सभी नागरिकों तक पानी की व्यवस्था घर- घर उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जल जीवन मिशन का शुभारंभ किया गया. ऐसी कई योजनाए चलाई गई केंद्र सरकार द्वारा इस योजना के अंतर्गत 360 लाख करोड़ रुपये का बजट तय किया गया है. लेकिन अभी तक अधिकांश घरों तक पीने का पानी नसीब नहीं है आइये इसके पीछे का कारण जानते है.
पीने वाले पानी की समस्या का इतिहास बहुत पुराना रहा है प्राचीन सभ्यताओं में भी जल की कमी एक महत्वपूर्ण समस्या थी ।मिस्र, मेसोपोटामिया, और सिंधु घाटी सभ्यता जैसी प्राचीन सभ्यताओं ने सिंचाई प्रणाली और जल संरक्षण के उपाय अपनाए थे । लेकिन 18 वीं सदी में औद्योगिक क्रांति के दौरान, यूरोप और अमेरिका में तेजी से शहरीकरण हुआ । इस दौरान जल स्रोतों का प्रदूषण बढ़ा और साफ पानी की मांग बढ़ी । 20वीं सदी आते- आते तक जनसंख्या में तेजी से वृद्धि, शहरीकरण, और औद्योगिकीकरण ने जल की मांग को और बढ़ा दिया । इस समय कई देशों में जल संकट गहराने लगा है भारत में जल संकट बड़े पैमाने पर फैला हुआ है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, और जलवायु परिवर्तन के कारण कई क्षेत्रों में पानी की कमी हो गई है ।
विशेष रूप से गर्मियों के दौरान कई हिस्सों में सूखा पड़ता है । चीन में भी जल की समस्या गंभीर है, खासकर उत्तरी क्षेत्रों में औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के कारण जल संसाधनों पर दबाव बढ़ा है। इसके साथ ही, जल प्रदूषण भी एक बड़ी समस्या है । दक्षिण अफ्रीका में विशेष रूप से केप टाउन शहर ने हाल के वर्षों में जल संकट का सामना किया है पानी की कमी और सूखे के कारण यहां पानी के कड़े प्रतिबंध लगाए गए थे । सऊदी अरब जैसे शुष्क देशों में भी पानी की भारी कमी है । यहां का अधिकांश पानी समुद्री जल को डीसैलिनेट करके प्राप्त किया जाता है, जो महंगा और ऊर्जा- गहन प्रक्रिया है । ऐसे ही अफगानिस्तान पाकिस्तान ईरान नाइजीरिया यमन का भी हाल है जो पानी की कमी से जूझ रहा है.
अगर वही हम पीने योग्य पानी की मात्रा का आकलन करे तो केवल 2.5 % ताजा पानी है, और इस ताजे पानी का अधिकांश हिस्सा ग्लेशियरों और स्थायी बर्फ में बंधा हुआ है । लगभग 1 % ताजा पानी वास्तव में मानव उपयोग के लिए आसानी से उपलब्ध है । आज, जल संकट एक वैश्विक समस्या बन गया है । विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की लगभग 40 % जनसंख्या जल संकट का सामना कर रही है वीं सदी की शुरुआत से अब तक, दुनिया की जनसंख्या तीन गुना बढ़ी है, लेकिन जल की मांग छह गुना बढ़ गई है। वही दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2025 तक विश्व की दो- तिहाई जनसंख्या जल संकट का सामना कर सकती है। अनुमान लगया जा रहा है कि उद्योगों और कृषि में उपयोग होने वाले रसायनों और कचरे ने कई जल स्रोतों को प्रदूषित कर दिया है।
कई नदियाँ, झीलें, और भूजल स्रोत सूख रहे हैं या तेजी से घट रहे हैं । जलवायु परिवर्तन ने भी जल स्रोतों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, जिससे सूखा और बाढ़ जैसी घटनाओं में वृद्धि हुई है । जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम के पैटर्न में बदलाव होगा, जिससे कुछ क्षेत्रों में जल की कमी और कुछ में अतिप्रवाह की समस्या उत्पन्न होगी । भारत में कुल जल संसाधनों का बड़ा हिस्सा वर्षा जल और सतही जल( नदियाँ, झीलें) में पाया जाता है । कुल जल संसाधनों का लगभग 4% भाग भूजल के रूप में है । पहले ही बताया की भारत में उपलब्ध ताजे पानी का केवल एक छोटा हिस्सा ही पीने योग्य है।
भारतीय जल संसाधन मंत्रालय और विभिन्न जल संबंधित संगठनों के अनुसार, कुल उपलब्ध जल संसाधनों का लगभग 2.5 से 1% ही मानव उपयोग के लिए उपयुक्त है । नियंत्रण बोर्ड( CPCB) के अनुसार, कई नदियाँ और जलाशय विभिन्न प्रकार के प्रदूषकों से दूषित हैं । पिछले कुछ दशकों में भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता में कमी आई है । वर्ष 1951 में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता लगभग 5,177 क्यूबिक मीटर थी, जो 2021 के आँकड़े अनुसार अब घटकर लगभग 1,545 क्यूबिक मीटर रह गई है । यह कमी मुख्य रूप से जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, और जलवायु परिवर्तन के कारण हुई है। भारत में कई राज्य और क्षेत्र जल संकट का सामना कर रहे हैं । विशेष रूप से पश्चिमी और दक्षिणी भारत में जल की कमी गंभीर है।
संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के अनुसार, 2025 तक भारत की लगभग आधी जनसंख्या जल संकट का सामना कर सकती है । भारत में इस समय कई राज्य पीने वाले पानी की कमी और जल संकट का सामना कर रहे हैं। राजस्थान का अधिकांश हिस्सा शुष्क और अर्ध- शुष्क है, जहां पानी की कमी एक प्रमुख समस्या है। इस राज्य में भूजल का स्तर लगातार गिर रहा है, और जल स्रोत सीमित हैं। महाराष्ट्र में भी विशेष रूप से विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र, नियमित रूप से सूखे का सामना करता है। जलाशयों और नदियों में जल की कमी और अनियमित मानसून के कारण पानी की उपलब्धता में कमी आती है। कर्नाटक के उत्तरी और मध्य भागों में पानी की कमी गंभीर है।
इस राज्य में कई जलाशय और नदियाँ सूख रही हैं, जिससे किसानों और आम जनता को पानी की कमी का सामना करना पड़ता है । आंध्र प्रदेश के कई हिस्सों में पानी की कमी है, विशेष रूप से रायलसीमा क्षेत्र में। भूजल स्तर गिर रहा है और सतही जल स्रोतों की कमी है । वही तेलंगाना में भी पानी की कमी एक प्रमुख समस्या है, खासकर गर्मियों में राज्य के कई हिस्सों में भूजल का स्तर काफी नीचे चला गया है। तमिलनाडु नियमित रूप से जल संकट का सामना करता है, विशेष रूप से तमिलनाडु का चेन्नई शहर । बताया जा रहा है कि जल स्रोतों पर अत्यधिक दबाव और अनियमित मानसून के कारण पानी की कमी होती है।
वही उत्तर प्रदेश साथ साथ पंजाब, हरियाणा, गुजरात के कई हिस्सों में पानी की कमी है, विशेष रूप से सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्र में विश्व स्वास्थ्य संगठन( WHO) और यूनिसेफ 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 2.2 अरब लोग ( लगभग 29 वैश्विक जनसंख्या) सुरक्षित रूप से प्रबंधित पीने के पानी की सेवाओं से वंचित हैं । लगभग 4.2 अरब लोग ( लगभग 55 वैश्विक जनसंख्या) सुरक्षित रूप से प्रबंधित स्वच्छता सेवाओं से वंचित हैं।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2025 तक विश्व की दो- तिहाई जनसंख्या ( लगभग 66%) जल संकट का सामना कर सकती है । वर्तमान में, लगभग1.8 अरब लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां पानी की गंभीर कमी है । नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 600 मिलियन ( 60 करोड़) लोग ( लगभग 45 %जनसंख्या) अत्यधिक जल संकट का सामना कर रही हैं ।